अटल बिहारी वाजपेयी : विचार, संगठन और राष्ट्रनिर्माण का युग: नरेंद्र कश्यप





विशाल वाणी......✍🏻

लखनऊ :- भारतीय राजनीति के इतिहास में भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का नाम एक ऐसे युग का प्रतीक है, जिसमें विचार, संगठन और राष्ट्रहित सर्वोपरि रहे। भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद उसके वैचारिक विस्तार और संगठनात्मक मजबूती को लेकर अटल जी की दूरदृष्टि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। उनका स्पष्ट मत था कि कोई भी राजनीतिक दल केवल चुनावी जीत से नहीं, बल्कि मजबूत कैडर, अनुशासित संगठन और समाज के हर वर्ग तक पहुँच बनाकर ही स्थायी सफलता प्राप्त कर सकता है।

अटल बिहारी वाजपेयी मानते थे कि सदस्यता विस्तार केवल संख्या बढ़ाने का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी विचारधारा से समाज को जोड़ने की प्रक्रिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज भारतीय जनता पार्टी का विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित होना, अटल जी के इसी वैचारिक बीज का विकसित स्वरूप है।

उत्तर प्रदेश सरकार के स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री नरेंद्र कुमार कश्यप कहते हैं—
“अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा को सत्ता का दल नहीं, बल्कि राष्ट्रसेवा का आंदोलन बनाया। संगठन, अनुशासन और समर्पण की जो परंपरा उन्होंने स्थापित की, वही आज भाजपा की सबसे बड़ी शक्ति है।” वर्ष 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय से ही अटल बिहारी वाजपेयी एक युवा, कर्मठ और वैचारिक रूप से स्पष्ट नेता के रूप में सामने आए। उन्होंने संगठन को देश के कोने-कोने तक पहुँचाने के लिए अथक परिश्रम किया। संसद से लेकर सड़कों तक, लेखनी से लेकर भाषण मंच तक— अटल जी ने हर माध्यम से राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूती प्रदान की।

25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में माता कृष्णा देवी एवं पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर जन्मे अटल का जीवन सादगी, अध्ययन और संघर्ष का अद्भुत संगम था। 16 अगस्त 2018 को 94 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ, किंतु उनके विचार आज भी देश की चेतना में जीवित हैं। वे मेधावी छात्र, प्रखर वक्ता, संवेदनशील पत्रकार, भाषा के स्वाभिमानी कवि और निर्भीक प्रशासक थे।

राज्य मंत्री नरेंद्र कुमार कश्यप के अनुसार—
“अटल की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे असहमति में भी सम्मान बनाए रखते थे। उनके शब्दों में मर्यादा और निर्णयों में राष्ट्रहित सर्वोपरि रहता था।”
अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण राजनीतिक जीवन राष्ट्र की अखंडता और एकात्मता को समर्पित रहा। कश्मीर का विषय उनके जीवन के प्रमुख संघर्षों में रहा। वे प्रारंभ से ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ इस प्रश्न पर दृढ़ता से खड़े रहे। मुखर्जी जी का ऐतिहासिक संदेश— “बिना परमिट मैं कश्मीर में प्रवेश कर गया हूँ, यह संदेश पूरे देश में पहुँचा दो”— अटल के मन में कश्मीर के प्रति आजीवन वैचारिक और भावनात्मक प्रतिबद्धता का आधार बना।
सत्ता से बाहर रहते हुए उन्होंने कश्मीर पर वैचारिक संघर्ष किया और प्रधानमंत्री बनने के बाद संवाद एवं समाधान का मार्ग अपनाया। उनका प्रसिद्ध कथन— “अगर पाकिस्तान कहता है कि वह कश्मीर के बिना अधूरा है, तो भारत पाकिस्तान के बिना भी पूर्ण है” उनकी दृढ़ राष्ट्रनीति और आत्मविश्वास को स्पष्ट करता है।

नरेंद्र कुमार कश्यप कहते हैं—
“अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रहित में कठोर निर्णय भी लिए, लेकिन मानवीय संवेदनाओं और संवाद की परंपरा को कभी टूटने नहीं दिया। यही उन्हें युगपुरुष बनाता है।”
अटल केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी एक सम्मानित राजनेता रहे। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा उन्हें “भारतीय राजनीति के एक पूरे युग का प्रतिनिधि” बताया जाना उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा का प्रमाण है। वे लोकतंत्र, सहमति और संवाद की राजनीति के प्रतीक थे। अटल बिहारी वाजपेयी का शताब्दी वर्ष हमें यह स्मरण कराता है कि राजनीति जब सिद्धांत, संगठन और संवेदनशीलता के साथ की जाती है, तो वह केवल सत्ता नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण का सशक्त माध्यम बनती है। उनका जीवन आज भी कार्यकर्ताओं, नेताओं और नागरिकों के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत है।

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