1984 के दंगों का दर्द आज भी जिंदा: कांग्रेस ने दिए जख्म, भाजपा ने लगाया मरहम: सरदार एस.पी. सिंह

◼️गाजियाबाद में 29 सिखों की निर्मम हत्या, कांग्रेस ने दी केवल 25 हजार की मदद, मोदी योगी सरकार ने बढ़ाया इंसाफ का भरोसा



रिपोर्ट :- अजय रावत 

गाजियाबाद :- 1984 के सिख दंगों का दर्द आज भी सिख समाज के दिलों में ताजा है। कांग्रेस शासनकाल में जिस तरह सिख समुदाय पर अत्याचार हुआ, उसे समय ने भले ढक दिया हो, पर मिटा नहीं सका। गाजियाबाद में तीन दिन तक चले उस भीषण दंगे ने 29 परिवारों को हमेशा के लिए उजाड़ दिया था। घर जल गए, मासूम बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया, पर कांग्रेस सरकार ने पीडि़तों के जख्मों पर सिर्फ 25-25 हजार रुपये की आर्थिक मदद देकर औपचारिकता पूरी की। अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य सरदार एस.पी. सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने सिख समाज के दर्द को कभी महसूस ही नहीं किया। उन्होंने कहा कि जिनके घर राख में बदल गए, जिनके अपनों को भीड़ ने जिंदा जला दिया, उन्हें कांग्रेस ने सिर्फ कुछ हजार रुपये देकर चुप कराने की कोशिश की। आज भी उन जख्मों का दर्द हमारे दिलों में ताजा है। 

1984 के दंगों के दौरान गाजियाबाद भी आग की लपटों में घिरा हुआ था। तीन दिन तक लगातार हिंसा होती रही। नासिरपुर फाटक के पास एक पिता और पुत्र को गले में टायर डालकर जिंदा जला दिया गया था। शहर के कई हिस्सों में आगजनी और लूटपाट हुई। बाद में प्रशासन ने राहत कैंप लगाए और लोगों को सुरक्षा में रखा। दंगा शांत होने के कुछ दिनों बाद, 8 नवंबर को सिख समाज के लोग गुरुनानक जन्मोत्सव मनाने के लिए बजरिया गुरुद्वारा सिंह सभा में इकट्ठा हुए। उसी सभा में दंगे में अपने पति और बेटे को खो चुकी बीबी हरनाम कौर बिलख रही थीं, जबकि मंच पर मौजूद अधिकारियों का सम्मान किया जा रहा था। उस समय महज 24 वर्ष के सरदार एस.पी. सिंह, जो खुद उस सभा में उपस्थित थे, ने जब यह दृश्य देखा तो विरोध में खड़े हो गए। उन्होंने कहा,  'आप उन अफसरों का सम्मान कर रहे हैं, जिनकी आंखों के सामने निर्दोष लोगों की हत्या हुई। उनके इस साहसिक विरोध के बाद कई अन्य युवा भी उनके साथ खड़े हो गए। 

स्थिति बिगडऩे के डर से तत्कालीन डीएम सी.पी. सिंह और एसएसपी कार्यक्रम से चुपचाप निकल गए। इसके बाद पुलिस और सेना की टीमों को तैनात किया गया ताकि कोई नई अप्रिय स्थिति न बने। 17 अक्टूबर 2000 को सरदार एस.पी. सिंह उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य नामित किए गए। उनके प्रयासों से आयोग ने 1984 के दंगों से जुड़ी पूरी जानकारी राज्य सरकार से मांगी। 31 जनवरी 2001 को गृह विभाग ने सभी प्रभावित जिलों से रिपोर्ट मांगी। उस रिपोर्ट में सामने आया कि कानपुर में 2063 केस दर्ज हुए, जिनमें 130 की हत्या हुई थी, जबकि गाजियाबाद में 123 केस दर्ज हुए और 29 लोग मारे गए थे, जबकि अकेले दिल्ली में लगभग दो हज़ार से ज़्यादा निर्दोष लोगों की हत्याएं हुई थी और सभी जगह पर लोगों के घरों में लूटपाट करके आगजनी की गई थी। इन आंकड़ों ने उस भयावहता को सामने रखा, जो कांग्रेस शासनकाल में घटित हुई थी।
सरदार एस.पी. सिंह ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने बाद में मुआवजे की राशि बढ़ाकर ढाई लाख रुपये कर दी, लेकिन जिन्होंने पहले 25 हजार रुपये ले लिए थे, उनके मुआवजे से वह राशि घटाकर दी गई।  

'कांग्रेस ने न तो कागजों में और न ही हकीकत में कोई इंसाफ जमीन पर दिया। भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद हालात बदले। मोदी सरकार ने 1984 के दंगों में मारे गए 3325 मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये की सहायता राशि देने का ऐलान किया। भाजपा सरकार ने दंगा पीडि़तों की पीड़ा को समझा और उनके पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाए। इसके साथ ही कानपुर के दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया, जो दोषियों को सजा दिलाने की दिशा में सक्रिय है।

सरदार एस.पी. सिंह ने कहा कि  मुआवजा जख्मों पर पूरी तरह से मरहम नहीं लगा सकता, पर अब लोगों में यह उम्मीद जगी है कि दोषियों को सजा जरूर मिलेगी। मोदी सरकार के नेतृत्व में न्याय की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है। मैंने स्वयं केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाकात कर 30 साल से लंबित मामलों में दोषियों को सजा दिलाने की मांग की है। उन्होंने कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा कि  इतना बड़ा नरसंहार हुआ, लेकिन कांग्रेस ने आज तक उसकी निंदा तक नहीं की। यह शर्मनाक है कि जिनके शासन में निर्दोषों का खून बहा, उन्होंने कभी पश्चाताप तक नहीं जताया।  

सरदार एस.पी. सिंह ने बताया कि मृतक आश्रितों को अब तक दस लाख रुपये तक की सहायता दी जा चुकी है। सरकार एसआईटी की रिपोर्ट पर कार्रवाई कर रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने न केवल राहत दी, बल्कि न्याय की उम्मीद भी जगाई। हम चाहते हैं कि अब इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति न हो, बल्कि न्याय की प्रक्रिया पूरी की जाए। 1984 का सिख दंगा भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय रहा है। यह केवल एक समुदाय पर हमला नहीं, बल्कि इंसानियत पर प्रहार था। गाजियाबाद से लेकर कानपुर तक फैली हिंसा ने जो घाव दिए, उन्हें समय भी नहीं भर सका। पर आज, मोदी सरकार के प्रयासों से सिख समाज के दिलों में इंसाफ की एक नई किरण जगी है।सरदार एस.पी. सिंह ने बताया कि हमारे जख्म भले पुराने हैं, लेकिन इंसाफ की उम्मीद आज भी जिंदा है। 

अब वक्त आ गया है कि जिन्होंने यह अपराध किए, उन्हें उनके गुनाह की सजा मिले।श्री सिंह ने विश्वास व्यक्त किया है कि जिस प्रकार अब दिल्ली सरकार ने दंगा पीड़ितों के पुनर्वास की योजना बनाई है, उसी तरह से पूरे देश में दंगा पीड़ितों के पुनर्वास की योजना बनाकर उन्हें राहत प्रदान की जाए। यह बात सत्य है कि मुआवजे से पूरा मरहम नहीं लग सकता है, क़ानूनी प्रक्रिया से दंगों के दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए। 

सरदार एस पी सिंह 
पूर्व सदस्य, अल्पसंख्यक आयोग 
उत्तर प्रदेश सरकार

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