संत कबीर सत्संग समारोह में देशभर के साधु-संतों ने लिया भाग, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलने का दिया संदेश





रिपोर्ट :- अजय रावत 

गाज़ियाबाद :- संत कबीर निर्णय मंदिर रावली रोड सुराना, मुरादनगर जनपद गाजियाबाद के सौजन्य से ज्ञानमार्गी शाखा के संत शिक्षाविद मूर्धन्य विद्वान साहेब अमलदास महाराज के द्वारा आयोजित “सद्गुरु कबीर सत्संग समारोह” में देश के विभिन्न प्रान्तों से आये साधु-समाज ने भाग लिया, तथा प्रवचन कर देश, समाज और व्यक्ति को प्रेम, भक्तिमार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
         
विद्वान संत साहेब अमलदास जी ने प्रवचन करते हुए सभी साधु-समाज का सत्संग में जन-मानस को दिये सन्देश को अपने जीवन में साकार करने के लिए प्रेरित किया, तथा कहा कि हमें कबीर साहेब द्वारा जन-जन को दिया गया उपदेश सत्य के बराबर कोई तपस्या नहीं है, और झूठ बोलना सबसे बड़ा अवगुण है, परमपद को वही प्राप्त कर सकता है, जिसके मन, कर्म, वचन में सत्य का वास हो, उन्होंने संत कबीर साहेब के कहे को उद्धृत करते हुए कहा कि “सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके ह्रदय सांच है, ताके ह्रदय आप” || लेकिन आज असत्य बोलकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है, हमें इस बुराई से बचना चाहिए, और न्याय मार्ग पर चल कर समाज का कल्याण करना चाहिए।
        
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट के संस्थापक / अध्यक्ष शिक्षाविद राम दुलार यादव ने कहा कि “संत कबीर ने जो कुछ कहा है वह अनुभव के आधार पर कहा है” सत्संग से हमें अपने को नैतिक आचरण करने की शिक्षा के साथ मानव बनने की प्रेरणा मिलती है, संत कबीर मानवता वादी रहे, वह रुढ़िवाद, कुरीतियों, आडम्बर, पाखंड, मूर्ति पूजा के विरोध में जन–मानस में उपदेश देते रहे, तथा कहा कि आपका भला यह सामाजिक बुराइयाँ नहीं कर सकती, आज शिक्षित लोग भी रास्ता भटक गये है, इसलिए व्यक्ति, समाज में नफ़रत, असहिष्णुता, अन्याय, अनाचार, असत्य पनप रहा है, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेश का त्याग कर हम प्रेम, भक्ति मार्ग पर चल सकते है, कबीर साहेब ने कहा है कि “कबिरा गरब न कीजिये, कबहुँ न हसिबा कोय, अबहीं नाव समुद्र में, न जाने का होय”|| मन की निर्मलता और सत्य के रास्ते से आप को परम शक्ति स्वयं साक्षात्कार करायेगी। उन्होंने कहा है कि “मेरो मन निर्मल भयो, जैसे गंगा नीर। खोजत, खोजत हरि फिरै, कहत कबीर, कबीर|| आपके अन्दर ही विराजमान है सर्वशक्तिमान सत्ता और आप भाग रहे हो उसे पाने के लिए, “कस्तूरी कुण्डल बसै, मृग ढूढै, बन माहि। ऐसे घट में पीव है, दुनिया जानै नाहि” || हमें देश, समाज में भाईचारा, सद्भाव, प्रेम की अलख जगानी चाहिए, तभी सत्संग का हमें लाभ मिलेगा।
        
इस अवसर पर परम पूज्य संत प्रेम नाथ योगी, कर्मेन्द्र साहेब, तारक साहेब, हेमन्त साहेब, धर्मानन्द जी, निर्मल साहेब, सेवा साहेब, सत्य प्रकाश बोध, संत शोधकर साध्वी लता, साध्वी राधा, संतोष, साध्वी दया, साध्वी राजेंद्री, संत सोधकर साहेब स्वामी वीर सिंह ने भी प्रवचन कर श्रद्धालुओं को मानवतावादी बन पाखंड, आडम्बर, अहंकार से मुक्त होने को प्रेरित किया, सैकड़ों संत महात्मा श्रद्धालुओं ने विशाल भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया। संत कबीर के भजन से श्रोता गण आत्मविभोर हो गये।

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