गुरु तेग़ बहादुर जी ने बलिदान देकर सनातन धर्म व संस्कृति को बचाया था: सरदार एसपी सिंह





रिपोर्ट :- अजय रावत 

गाज़ियाबाद :- जब जब देश में सनातन संस्कृति व धर्म की रक्षा की बात होगी, सिक्खों के नौवें गुरु, गुरु तेग़ बहादुर जी का नाम श्रृद्धा व सत्कार के साथ लिया जायेगा और उनके इस महान बलिदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। परन्तु शायद आज भी भारत देश की आधी से अधिक आबादी को यह जानकारी व एहसास भी नहीं है कि आज जिस धर्म व संस्कृति पर हम गर्व करने की बात करते हैं उसकी रक्षा गुरु तेग़ बहादुर जी ने दिल्ली में अपने तीन सहयोगियों के साथ शहादत देकर की थी। सभी जानते हैं कि मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने उत्तर भारत में जनेऊ धारण करने वाले लोगों को मुस्लिम धर्म क़बूल करने का आदेश दे रखा था और आदेश न मानने पर उनकी हत्या कर दी जाती थी। कश्मीरी हिंदुओं ने मुग़ल बादशाह के आदेश से जब सिक्खों के नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी को यह बात बताई तो उन्होंने कहा कि देश को किसी महापुरुष के बलिदान की आवश्यकता है। उस समय उनके सुपुत्र गोविंद राय जिनकी उम्र नौ साल की थी, ने कहा पिताजी आपसे बड़ा महापुरुष और कौन होगा, आप इस काम को बेहतर कर सकते हैं। तब गुरु जी ने कश्मीरी हिंदुओं से कहा कि मुग़ल बादशाह को बोलो कि यदि आप गुरु तेग़ बहादुर जी का धर्म परिवर्तन करा दें तो हम सब भी मान जाएँगे। 

पंडितों से यह सूचना मिलने पर औरंगज़ेब ने गुरु जी दिल्ली बुलवाया। गुरु जी अपने साथियों के साथ दिल्ली को रवाना हो गए। आगरा पहुँचने पर बादशाह के सैनिक गुरु जी को हिरासत में लेकर दिल्ली आ गए। यहाँ चाँदनी चौक में कोतवाली में उन्हें बंधक बना कर रखा गया और उनसे इस्लाम धर्म क़बूल करने को कहा गया। जिस पर उन्होंने साफ़ मना कर दिया। जिस पर बादशाह के वजीर द्वारा उन पर तरह तरह के दवाब डाले गए।अन्त में इस्लाम क़बूल न करने पर पहले उनके तीन साथियों भाई मति दास जी, भाई सति दास जी व भाई दयाला जी को भयंकर रूप से तसीहे देकर शहीद कर दिया गया । नवम्बर 1675 में गुरु तेग़ बहादुर जी से फिर से धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला गया, न मानने पर उनका सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया। ऐसे में वहाँ हाहाकार मच गया और भगदड़ मच गई। गुरु जी के सिर को भाई जैता जी ने आनन्दपुर साहिब ले जाकर गुरु गोबिंद सिंह जी को सौंप दिया। वहाँ अब ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब स्थापित है, गुरु जी के धड़ का सस्कार दिल्ली में भाई लक्खी शाह ने अपनी झोपड़ी में रख कर किया, यहाँ आज गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब स्थापित है।
दिल्ली में जहाँ गुरु जी को शहीद किया गया था वहाँ पर ऐतिहासिक गुरुद्वारा सीसगंज साहिब स्थापित है। सभी जगह श्रृद्धालुओं का ताँता लगा रहता है और लंगर प्रसाद वितरित किया जाता है।वहीं अब तत्कालीन मुग़ल शासक औरंगज़ेब की कब्र पर शायद आज कोई दिया जलाने वाला भी नहीं मिलता है।गुरु जी की इस लासानी शहादत से मुगल बादशाह औरंगज़ेब के मंसूबों पर पानी फिर गया। इसके पश्चात् गुरु गोविंद सिंह जी के चारों पुत्रों की शहादत ने देश में एक नई क्रांति ला डाली। गुरु गोविंद सिंह जी ने अपना पूरा परिवार देश व धर्म की ख़ातिर बलिदान कर दिया था। आज गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित खालसा पंथ की मानवता के लिए बढ़ चढ़कर योगदान देने की प्रशंसा होती है। इस साख को बचाए रखने की ज़िम्मेदारी भी हम सभी पर ही है। 

आज आवश्यकता है कि गुरु तेग़ बहादुर जी व अन्य जिन महापुरुषों ने देश की एकता व अखंडता के लिए जो शहादत दी थी, सामाजिक संगठन व सभी देशवासी, अपना सर्वस्व बलिदान देकर देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा करने वाले सभी महापुरुषों के विचारों को आत्मसात् करें तथा राष्ट्र निर्माण में उनके जीवन से प्रेरणा लेकर राष्ट्र निर्माण में जागृत रहें तथा अपना भी सहयोग प्रदान करें, इसके लिये केन्द्र व प्रदेश की सरकारों को और अधिक सहयोग करने की ज़रूरत है ।नफ़रत के लिए भारत देश में कोई जगह नहीं है। ऐसे महापुरुषों के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी, कोटि कोटि प्रणाम गुरु तेग़ बहादुर जी की शहादत को.. 


लेखक- सरदार एस पी सिंह (एड)
मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन( अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय-भारत सरकार) के उपाध्यक्ष व उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य रह चुके हैं।

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